यादों के
झरोंखे से
झांककर
जो देखा मैंने ,
कोई नहीं था
इन्तजार मेरा
करने के लिये.
घूम फिर कर
लौट आया मैं ,
आज में ,
इस पल को
जीने के लिये !
गलती की थी
मैंने
कुछ सपने देखने की ,
अब लगा हुआ हूं
उन सपनो को
पूरा करने के लिये .
बंधा हुआ बन्धनों से
जब करता हूँ
उनमुक्त उड़ने की कोशिश,
पंख फडफडाकर गिर जाते है
जैसे बांध दिया हो
किसी ने उन्हें .
लगा हुआ हूँ ,
आज में
उन्ही बन्धनों से छूटने की
कोशिश में
जीने के लिये !